नागरमोथा की पहचान
आज मैं बात करने वाली हूँ मोथा घास की मोथा एक तरह की घास है, जो किसानों के लिए सर दर्द बनी रहती है। मोथा घास खेती के लिए अभिशाप मानी जाती है, क्योंकि यह इतनी तेजी से फैलती है कि खेतों में लगी फसल को बर्बाद कर देती है।
अधिकांश लोग मोथा को बेकार ही मानते हैं, लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है। असलियत यह है कि मोथा आपके लिए वरदान की तरह है। जी हाँ, जीस मोथा घास को खेतों की फसल नष्ट करने वाली घास माना जाता है। वह एक औषधि भी है। इसका रोटेंडस है। इसे मुस्तक या नागरमोथा भी कहते हैं। यह सूअर का प्रिय भोजन होता है।
सूअर इसकी जड़ खोदकर इसकी कंध को खाते हैं। मोथा में प्रोटीन स्टार्ट और कई कार्बोहाइड्रेट पाए जाते हैं। यह स्त्रियों के मासिक धर्म की रामबाण औषध है। यह पाचन अच्छा रख उधर रोग ठीक करती है। बुखार और गाठिया बाय में यह फायदेमंद होती है। दोस्तों, मोथा घास भारत के जली स्थानों, अधिकांश तह, नालों और नदियों के किनारे नमी वाली जगह पर पैदा होती है।
यह घास बहुवर्षीय होती है। छोटी झाड़ी एक से दो फुट ऊंची होती है। इसका पतला कांड गहरे हरे रंग का भूमिगत कंध के बीच से निकलता है जो ऊपरी भाग में त्रिकोणाकार होता है। इसके पत्ते लंबे, पतले और नुकीले होते हैं इसके फूल जुलाई में और फल दिसंबर में लगते हैं।
इसकी जड़ अंडाकार बाहर कृष्ण वर्ण की लकड़ी के सामान गोल आकार की सुगंधित होती है, जो तोड़ने के भीतर श्वेता वर्ण की होती है। जल लगभग एक सेंटीमीटर लंबी और डेढ़ से दो सेंटीमीटर ब्यास की प्रकंद युक्त तथा धागों के समान रोबों से ढकी होती है। मोथा की जड़ या प्रकरण जैसे राइजोम कहते है। इसका ही चिकित्सक प्रयोग किया जाता है।
मोथा घास मेघ के सदस्य, श्रावण या जल से संबंध होने के कारण इसे पारित भी कहते हैं। संस्कृत में मुस्ता या मुस्तक कहते हैं। इंग्लिश में नट ग्रास या कोको ग्रास कहते हैं। उर्दू में सदकुफ़ी, उड़िया में मुथा कन्नड़ में भद्रहुल्लू या कोरनारी, तेलगु में तुंगमुश्ते या भद्रमुस्ते नेपाली में कसूर कहते हैं
दोस्तों, यह थी पूरी मोथा घास की पहचान।
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